गाय आधारित उद्योगों के वैश्विक परिसंघ (GCCI) की मध्य प्रदेश राज्य स्तरीय बैठक आज एलएनसीटी विश्वविद्यालय, जे.के. हॉस्पिटल कैंपस, कोलार रोड, भोपाल में सफलतापूर्वक आयोजित की गई। इस महत्वपूर्ण बैठक की अध्यक्षता GCCI के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. वल्लभ भाई कथीरिया (पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष) ने की।
बैठक में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे डॉ. अनुपम चौकसे, कुलाधिपति – जेएनसीटी प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी एवं सचिव – एलएनसीटी समूह, जिन्होंने गौ आधारित शिक्षा और शोध के क्षेत्र में एलएनसीटी समूह की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
इस अवसर पर एलएनसीटी विश्वविद्यालय के कुलगुरु एवं गौ सेवा स्वयंसेवक मध्य प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई के प्रदेश संयोजक श्री एन. के. थापक विशेष रूप से सम्मिलित हुए। गौ आधारित उद्योगों के विकास में उनका योगदान अत्यंत सराहनीय रहा है। उनकी सहभागिता से संगठनात्मक दिशा एवं भविष्य की रणनीतियों पर उपयोगी विचार सामने आए।
डॉ. थापक ने अपने संबोधन में कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मूल उद्देश्य भारतीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रणाली को विकसित करना है। भारत की सांस्कृतिक जड़ों में रची-बसी गौ परंपरा आज भी प्रासंगिक है और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में यह एक मजबूत आधार बन सकती है।” उन्होंने यह भी बताया कि गाय आधारित उत्पादों से पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और गंभीर बीमारियों से बचाव में मदद मिल सकती है।
इस राज्य स्तरीय बैठक में मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए GCCI के जिला अध्यक्ष, विभागीय संयोजक एवं गौ सेवा संगठनों के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। चर्चा के मुख्य विषयों में गौ आधारित जैविक खेती, स्वास्थ्य उत्पाद, निर्माण सामग्री, फार्मास्युटिकल और स्वरोजगार की संभावनाएं शामिल रहीं।
डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने अपने संबोधन में कहा कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यदि गाय को केंद्र में रखकर उद्योगों का विस्तार किया जाए, तो यह मॉडल न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाएगा बल्कि देश की आत्मनिर्भरता को भी मजबूती देगा।
बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया कि आगामी महीनों में राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में गौ आधारित स्टार्टअप्स, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और शोध परियोजनाओं को आरंभ किया जाएगा।
यह आयोजन न केवल गाय आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देने हेतु एक सशक्त मंच साबित हुआ, बल्कि आत्मनिर्भर भारत, हरित अर्थव्यवस्था, और भारतीय परंपराओं के आधुनिक समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल भी बना।